मै सोच में खोया था !
उस दिन सारी रात न सोया था ! !
एक आसूं छलक आया था दाएं आंख से !
शायद कुछ चला गया था समय की राख से ! !
मैंने गिरने ना दिया वो अश्क पोछ डाला !
मन में चुभते हुए एक कांटे को नोच डाला ! !
फिर किसी दुसरे ख्याल में उलझ गया !
सोचा राख के उस दाने का मामला सुलझ गया ! !
फिर पड़ा रहा मैं आखें मूंदकर , सोने की कोशिश थी !
दबोचकर एक तकिया और, शायद रोने की कोशिश थी ! !
एक दर्द सा सीने में, मैं करवटें बदलता रहा !
फरवरी की रात में मैं हर साँस जलता रहा ! !
मैंने किया था फैसला अब और नहीं बहुत हुआ !
किसी का होजाने की मैंने छोड़ दी मंगनी दुआ ! !
फिर ना जाने क्यों ये एहसास करने मुझे बर्बाद आये !
समय की राख छानकर फिर तुम याद आये ! !