जब भी होती है जिक्र-ए-मोहब्बत!
दर्द का आलम होता है!!
वो अपनी कहानी केहेते है !
मेरी आखों में शबनम होता है !!
तेरा ज़िक्र ग़र हम कर पाते !
शायद सुकून-ए-दिल हो पाती !!
वालिद-ए- फ़िक्र मेरे तनहा रह जाने की है !
काश के उनकी आरज़ू हक़ीक़त में तामिल हो जाती !!
मै बेगैरत, बेहया, अपनी नाकामी को बहनो से ओढ़े हूँ !
ज़िंदा दीखता हूँ महफिलों के लिए, वरना ज़िंदा लाश यहाँ !!
मैंने तो खो दिया है कबका मेरे मंज़िल की प्यास को !
जाने वो मेरे लिए किसकी करते है तलाश यहाँ !!
वारिसों को गम तो होगा, मेरे इसकदर बेज़ार होने पे!
मैं सोचता हूँ अबके हो जाये तेरा ज़िक्र और ये तमाशा बंद हो !!
आरज़ूओं पे अश्कों का सैलाब तो होगा, और सैयाद भी कहलाऊंगा !
चाहे फिर राहे-ए-ज़िन्दगी में, कुछ ख़मियाज़ें चंद हो !!
दर्द का आलम होता है!!
वो अपनी कहानी केहेते है !
मेरी आखों में शबनम होता है !!
तेरा ज़िक्र ग़र हम कर पाते !
शायद सुकून-ए-दिल हो पाती !!
वालिद-ए- फ़िक्र मेरे तनहा रह जाने की है !
काश के उनकी आरज़ू हक़ीक़त में तामिल हो जाती !!
मै बेगैरत, बेहया, अपनी नाकामी को बहनो से ओढ़े हूँ !
ज़िंदा दीखता हूँ महफिलों के लिए, वरना ज़िंदा लाश यहाँ !!
मैंने तो खो दिया है कबका मेरे मंज़िल की प्यास को !
जाने वो मेरे लिए किसकी करते है तलाश यहाँ !!
वारिसों को गम तो होगा, मेरे इसकदर बेज़ार होने पे!
मैं सोचता हूँ अबके हो जाये तेरा ज़िक्र और ये तमाशा बंद हो !!
आरज़ूओं पे अश्कों का सैलाब तो होगा, और सैयाद भी कहलाऊंगा !
चाहे फिर राहे-ए-ज़िन्दगी में, कुछ ख़मियाज़ें चंद हो !!
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