Wednesday, 28 December 2016

अब जाने दे


वो खुश है अपने हमसफ़र की बाँहों में !
काफी अरसा हो चूका उनको मेरी सोच की पनाहो में !!
काट दे अब उलझे गाँठ पड़े धागे भी !!
अब जाने दे, उनको ज़हन से आगे भी !

जो बीत गया उस ज़माने को याद कर
टूटे हुए दिल पर, नाउम्मीदी के खंजर
हासिल बस ग़म होगा !
अब जाने दे, ये खुद पर ही  सितम होगा !!

उसकी ख़ुशी में ग़र तू  खुश नहीं
है तेरी बेमंज़िल की जुस्तजू वही
तो कैसी ये मुहोब्बत है !
अब जाने दे, जो माज़ी की सोहबत है !!

तेरे नसीब का तूने कर दिया फैसला तो क्या !
तेरा टूट चुका है हौसला तो क्या!
किसी के नसीब में तेरा आना भी लिखा होगा!
अब जाने दे, बहारों का यहाँ भी दाखिला होगा!!

अब नए ख्वाबों के लिए निगाहों को ख़ाली कर !
अपने अमावस में एक दिवाली कर !!
बुन ले नए सपने, उम्मीद के धागे भी !
अब जाने दे, आरजू  ज़हन से आगे भी !

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