कौन कहता है? (४)
कौन कहता है, मुहब्बत, तिजारत नहीं होती ?
कौन कहता है? (४)
दगा देता है जो, वही गुनहग़ार यहाँ !
बेतफतीश भरोसा करना (२), गुनाह उससे भी ज़ादा ही तो है !!
क्या ग़िला करू? दिल दिया तो तोड़ा गया ? ग़र ज़रूरी था इतना, क्यों छोड़ा गया ?
हर शख्स फना होने को तैयार कहाँ ? ज़माने में लोगो का ग़लत इरादा भी तो है !!
कौन कहता है? (४)
कौन कहता है, सिर्फ एहसासों से ईबादत नहीं होती ?
ये अश्कों से बना दर्द का घरोंदा ही तो है !!
ये जो तकिये से सिमटी नमी है यहाँ,
तन्हाइयों में यादों को मिला ओहदा ही तो है !!
कौन कहता है? (७)
कौन कहता है, मुहब्बत, तिजारत नहीं होती ?
ये आरज़ूओं का वफ़ा से सौदा ही तो है !!
किताब में जो छुपा रक्खी है ग़ुलाब, क्या पैग़ाम है ख़ाली ?
इज़हार-ओ- इकरार का ये मसौदा भी तो है !!
कौन कहता है? (४)
दगा देता है जो, वही गुनहग़ार यहाँ !
बेतफतीश भरोसा करना (२), गुनाह उससे भी ज़ादा ही तो है !!
क्या ग़िला करू? दिल दिया तो तोड़ा गया ? ग़र ज़रूरी था इतना, क्यों छोड़ा गया ?
हर शख्स फना होने को तैयार कहाँ ? ज़माने में लोगो का ग़लत इरादा भी तो है !!
कौन कहता है? (४)
कौन कहता है, सिर्फ एहसासों से ईबादत नहीं होती ?
ये अश्कों से बना दर्द का घरोंदा ही तो है !!
ये जो तकिये से सिमटी नमी है यहाँ,
तन्हाइयों में यादों को मिला ओहदा ही तो है !!
कौन कहता है? (७)
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