Wednesday, 15 November 2023

तीन नम्बर सेल

दस  बटे छै की कोठरी,
आठ ऐलूमुनियम की थालियाँ
घर से भेजी हुई खुली पोटरी,
नज़म, गीत, सोलह गोटी और गालीयाँ ।

आठ लोग ठूसे हुए एक साथ।
एक उम्र सी साथ बीती सात रोज़ ।
कई किस्से, कई ग़म, छूए एक साथ।
कभी पस्चाताप, कभी उम्हड़ता आक्रोष ।

न मोबाईल, न ईन्टरनेट, न नौकर हम,
न हवस, न उमीद, न धोखा न अकेलापन।
कारा की ऊची दीवार, सलाखें, ठोकर, ग़म।
जेल की वो बिताई रातो में, ठहर गया है जीवन।

दिन में तीन बार गिना जाना,
दो बार, कुल दो घन्टे की छूट के चर लो ।
बीच रात नीन्द का छीना जाना
ये जाचना,कि यातना से थक, खुदखुशी न कर लो।

साल बीतने को है, मै बाहर हू बेल पे।
साड़े पन्द्रह ईन्च की स्क्रीन से चिपका मै,
रह रह कर लौट जाता हूँ, उस 3नंमबर सेल में।
लौटकर जाना नहीं मुझे, पर अटका वहीं, दुबका मै।







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