हाँ, जानता हूँ मैं
हुक्का पानी बंद है !
अनकहा सा, छुपा हुआ
सबको मुझसे द्वन्द है !!
ना समय, ना शब्दों का
मोल कोई, तिरस्कार आदी हूँ !
मैं मस्तिश्कों का उत्पीरण
समय की बस बर्बादी हूँ !!
जो नाराज़ मेरे खबर ना
लेने से, वो भी आते है !
अपना काम मुफ्त निकालने
वो मुझसे ज़रूर बतियाते है !!
मेरी ज़रुरत, ग़र बताए भी,
वो मशरूफ़, वक्त नहीं है ?
फिर,उनकी उपेक्षा बताती है
दंड है, बस व्यक्त नहीं है !!
टूटी टोकरी या फिर,
कोई पोछे का कपडा !
हाथ तभी लगेगा मुझपर
कूड़ा कर्कट, या रगड़ा !!
बाकी,उमीदें चोट देंगी,
कड़ी हिदायत,रखना नहीं है !!
इस्तेमाल होते जाओ बस,
औज़ार बनो, थकना नहीं है !!
माँ का हाल जानता हूँ, उनका
जग से मुझसा ही सम्बन्ध है !!
हम दोनों टूटी टोकरी या पोछा
और, हुक्का पानी बंद है !!
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