Tuesday, 27 February 2024

मुहोब्बत की दुकान और मैं !

माना की अकेला हूँ बरसों से,
किसीको हमसे मुहोब्बत नहीं है अर्सों से !
हमे जिनकी अरमान हुई, पाने की प्यास जगी,
उन्हें कोई और भा गया, वो उनके साथ भगी !!

 लुट जाये तो लुट जाये  उमीदें और अरमान  सभी 
कोई हमारी पसंद से आबाद, मेरा ऐहसान सही !!
और  तुमने जो खोली है , मुहोब्बत की दूकान यहाँ 
भीड़ तो जुटी होगी, बहोत है अकेलेपन  से परेशान यही !!

कोई परेशान है यहाँपर साथ वाले से भी,,
परेशान है कोई सच्ची बात करने वालों से भी !!
मुहोब्बत की दूकान पे, क्या ये साथ वाले बिकजायेंगे?
सच की कड़वाहट दूर हो, ऐसे झूठ टिक जायेंगे ? 

बिकती है मुहोब्बत वहीँ, जहाँ उसकी कद्र  नहीं होती!
लम्पट होते है प्रेमी, प्रेमिकाएं भद्र नहीं होती !
टंगी है तुम्हारे दूकान पे वो वासना है प्रेम की शॉल ओढ़े !
ज़िन्दगी बर्बाद होती है इनसे, बस बनते है माहौल थोड़े !!

 
मुहोब्बत एकतरफा सही पूँजी है, एहसास सच्च्चे है !!
हमे नहीं जाना इस दूकान को ओर, हम अकेले ही अच्छे है !
हमे खोलना होगा तो प्रेम का मंदिर बनाएंगे !
राधा और मीरा की तरह अपनी प्रीत निभाएंगे !!



Wednesday, 15 November 2023

तीन नम्बर सेल

दस  बटे छै की कोठरी,
आठ ऐलूमुनियम की थालियाँ
घर से भेजी हुई खुली पोटरी,
नज़म, गीत, सोलह गोटी और गालीयाँ ।

आठ लोग ठूसे हुए एक साथ।
एक उम्र सी साथ बीती सात रोज़ ।
कई किस्से, कई ग़म, छूए एक साथ।
कभी पस्चाताप, कभी उम्हड़ता आक्रोष ।

न मोबाईल, न ईन्टरनेट, न नौकर हम,
न हवस, न उमीद, न धोखा न अकेलापन।
कारा की ऊची दीवार, सलाखें, ठोकर, ग़म।
जेल की वो बिताई रातो में, ठहर गया है जीवन।

दिन में तीन बार गिना जाना,
दो बार, कुल दो घन्टे की छूट के चर लो ।
बीच रात नीन्द का छीना जाना
ये जाचना,कि यातना से थक, खुदखुशी न कर लो।

साल बीतने को है, मै बाहर हू बेल पे।
साड़े पन्द्रह ईन्च की स्क्रीन से चिपका मै,
रह रह कर लौट जाता हूँ, उस 3नंमबर सेल में।
लौटकर जाना नहीं मुझे, पर अटका वहीं, दुबका मै।







Sunday, 13 August 2023

हुक्का पानी बंद है !

हाँ, जानता हूँ मैं
हुक्का पानी बंद है !
अनकहा सा, छुपा हुआ 
सबको मुझसे द्वन्द है !!

                                                                    ना समय, ना शब्दों का 
                                                                    मोल कोई, तिरस्कार आदी हूँ !
                                                                    मैं मस्तिश्कों का उत्पीरण
                                                                    समय की बस बर्बादी हूँ !!

जो नाराज़ मेरे खबर ना 
लेने से, वो भी आते है !
अपना काम मुफ्त निकालने 
वो मुझसे ज़रूर बतियाते है !!

                                                                    मेरी ज़रुरत, ग़र बताए भी,
                                                                    वो मशरूफ़, वक्त नहीं  है ?
                                                                    फिर,उनकी उपेक्षा बताती है 
                                                                    दंड है, बस व्यक्त नहीं है !!

टूटी टोकरी या फिर,
कोई पोछे का कपडा !
हाथ तभी लगेगा मुझपर 
कूड़ा कर्कट, या रगड़ा !!

                                                                    बाकी,उमीदें चोट देंगी,
                                                                    कड़ी हिदायत,रखना नहीं है !!
                                                                    इस्तेमाल होते जाओ बस,
                                                                    औज़ार बनो, थकना नहीं है !!

माँ का हाल जानता हूँ, उनका 
जग से मुझसा ही सम्बन्ध है !!
हम दोनों टूटी टोकरी या पोछा 
और, हुक्का पानी बंद है !! 

Tuesday, 16 June 2020

हासिल-ए-ज़िंदेगी

तदबीर कुछ, कुछ और इरादा था
वो नादान उम्र का तकाज़ा था !
हसरत ने इबादत की शक्ल न ली थी
बेअदबगी का भी खामियाज़ा था !!

क्या पता था की ये इस कदर नासूर होगा
धड़कनो में दर्द, आखों में सूखा समंदर होगा !
शक़्स ना मिला वो, तो दिल शक्शियत तलाशता रहा
ढूंढ़ता रहा, माज़ी की परछाई कीस्के  अंदर है ?


ये हाल-ए-जूनून बड़ा ज़ालिम है, कुछ सूझता नहीं
इस तळाश में होश ना रहा, उसके भी अरमान होंगे !
होता कुछ फायदा अगर, अपने शख्सियत पे भी काम होता
ऐसे कैसे और क्यों भला वो हमपे यूँही मेहरबान होंगे !!

जब तक इस बात का एहसास हो देर हो चुकी थी
गुज़र चुकी थी मंज़िल और राह  मुड़ चुकी थी गर्दिश की ओर !
इस हाल में विवाह? मै बेगैरत वो भी कर गया!
अपने वलिदों की ख़ुशी के लिए के चला उसे भी आतिश की ओर !!

मुझे माफ़ कर सको तो कर देना हमदम!
ये जन्मो का साथ महीनो ही चला पाया मैं !
हासिल-ए-ज़िंदेगी अब तुझे दागदार करने का इलज़ाम
देखना ये के इस कलंक के साथ कहाँ तक जी पाया मैं !!





Wednesday, 23 October 2019

Phase of Life

The day it sparked my heart
the day I felt the new start
I was not sure, what I am looking for!
That what suppose to be, was there, what more?


I was too small to understand
What has taken birth in me, not planned
The feel good factor, was enough to bind me up!
After decades also, to remind me up !!

Expose to the world made me gave it a name
To give it a face, dare to claim!
Soon made realized, me stepped in wrong way
to make me understand, they had gone strong way.

Those were just early phase of life
It was not wise to live over an edge of knife.
It was time to move on in life, too early for doom !
Needed much skills to acquire, need much to groom !


When time came I was busy building me
Patching up breaks, and shielding me !
I gave up importance to it, winded up myself!
May have spoken many lies, and kept it on shelf.

Every refuse, every rejection, added up something to it.
More I wanted to be fit, more I moved far from it.
I kept my it for the special one, made for me!
Inside I was dry to death, like a dead tree!!

Then came she as a spin-drift on sand !'
I felt this, the last chance, must do grand!!
Found her too much to handle now!
She was not for a kiss, rather for a bow!
 

Time passed with her as purity of grace!
May be for it the golden phase!
I stepped back with respect and
remorse!
Turned my life from the course!

It was time now I went for my turn !
Arranged by others rather of quest to burn!

It came for small period, went back to haze in thrive
It ma still without it, after so many passed phase of life !!


Monday, 27 May 2019

दाम्पत्य

बलिदानो की एक विधि है,
संकल्पो से प्राप्त निधि है !
गिरते, सम्हालते चलना है
चाल यहाँ किस्की सधी है ?

गृहस्ताश्रम के खँडहर समेटे
दांपत्य सुख स्वप्न है क्षणभर की। 
कभी संगिनी थी जीवन भर की ?
अब अवसर और स्मरण भर की। 

वंश आगे को चलाने
विवाह व्यापार में शिरकत लो !
हस हस कर व्यथा छुपाना सीखो
अंदर रक्त झरते है झरने दो !! 

Sunday, 1 July 2018

कौन कहता है ?

कौन कहता है? (४)

कौन कहता है, मुहब्बत, तिजारत नहीं होती ?
ये आरज़ूओं का  वफ़ा से सौदा ही तो है !!

किताब में जो छुपा रक्खी है ग़ुलाब, क्या पैग़ाम है ख़ाली ?
इज़हार-ओ- इकरार का ये मसौदा भी तो है !!

कौन कहता है? (४)

दगा देता है जो, वही गुनहग़ार यहाँ !
बेतफतीश भरोसा करना (२), गुनाह उससे भी ज़ादा ही तो है !!

क्या ग़िला करू?  दिल दिया तो तोड़ा गया ? ग़र ज़रूरी था इतना, क्यों छोड़ा गया ?
हर शख्स फना होने को तैयार कहाँ ? ज़माने में लोगो का ग़लत इरादा भी तो है !!

कौन कहता है? (४)

कौन कहता है, सिर्फ एहसासों से ईबादत नहीं होती ?
ये अश्कों से बना दर्द का घरोंदा ही तो है !!

ये जो तकिये से सिमटी नमी है यहाँ,
तन्हाइयों में यादों को मिला ओहदा ही तो है !!

कौन कहता है? (७)


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